Thursday, July 3, 2025
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बीएड सहायक शिक्षकों की नौकरी पर संकट… अपनी सेवा सुरक्षा की मांग को लेकर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मुलाकात की

आदिवासी समाज की शिक्षा और भविष्य दांव पर

रायपुर। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर संभागों में कार्यरत 3000 से अधिक बीएड डिग्रीधारी सहायक शिक्षकों की नौकरी संकट में आ गई है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्तियों को अवैध करार दिया है, जिससे इन शिक्षकों का भविष्य अनिश्चित हो गया है। इन शिक्षकों ने अपनी सेवा सुरक्षा की मांग को लेकर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मुलाकात की और अपनी नौकरियां बचाने की गुहार लगाई।

इन बीएड सहायक शिक्षकों का कहना है कि उन्होंने कठिन संघर्षों के बाद सरकारी शिक्षक की नौकरी हासिल की थी। पिछले डेढ़ साल से ये शिक्षक आदिवासी बहुल सुदूर क्षेत्रों जैसे सुकमा, कोंटा, और ओरछा में कार्यरत हैं, जहां उन्होंने बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए कड़ी मेहनत की। उनका कहना है कि अगर उनकी नौकरी जाती है, तो यह न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि आदिवासी समाज के लिए भी एक बड़ा झटका होगा।

शिक्षकों की समस्याएं और उनके संघर्ष
इन शिक्षकों ने बताया कि उन्होंने इस नौकरी के लिए अपनी पुरानी नौकरी छोड़ी थी, और बीएड की डिग्री लेने के लिए कर्ज भी लिया था। अब उनकी नौकरी जाने के कारण उनके जीवन में अनिश्चितता और आर्थिक संकट पैदा हो गया है। नौकरी छिनने से आदिवासी समाज में शिक्षा के प्रति विश्वास कमजोर हो सकता है, जो कि समाज के विकास के लिए नकारात्मक प्रभाव डालेगा।

शिक्षकों की मांगें
इन शिक्षकों ने सरकार से अपनी सेवाओं की सुरक्षा की मांग करते हुए कहा कि उन्हें उच्च कक्षाओं में समायोजित किया जाए, जैसा कि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपने सुझाव में कहा है। उन्होंने मुख्यमंत्री से निवेदन किया है कि इस मुद्दे को न्यायपूर्ण और स्थायी रूप से हल किया जाए ताकि भविष्य में अन्य शिक्षकों को ऐसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। शिक्षकों ने कहा कि यदि उनकी सेवाएं समाप्त होती हैं, तो यह केवल उनका व्यक्तिगत नुकसान नहीं होगा, बल्कि पूरे आदिवासी समाज को पीछे धकेलने का कार्य होगा।

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मुख्यमंत्री से गुहार
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मिले शिक्षकों ने कहा, आपका संघर्ष और आदिवासी समाज के प्रति आपका समर्पण हमारी प्रेरणा है। हम आपसे निवेदन करते हैं कि हमारे संघर्ष को समझें और इस संकट का समाधान निकालें। यदि हमारी सेवाएं समाप्त होती हैं, तो यह आदिवासी समाज और शिक्षा को कमजोर करने जैसा होगा। शिक्षकों ने अपनी आवाज उठाते हुए कहा कि शिक्षा को प्रगति का माध्यम मानने वाली नई पीढ़ी निराश हो सकती है, यदि इस समस्या का समाधान जल्द नहीं निकाला गया।

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