अजय श्रीवास्तव/गरियाबंद — गरियाबंद जिले के मैनपुर में प्राकृतिक झीलों नदी एवं अन्य जल स्रोत सूखने से वनांचल क्षेत्र के पहाड़ी ग्रामों में हर साल भीषण गर्मी के दिनों में लगातार जल संकट रहता है, और यह परिस्थिति लगातार गहराती जा रही है। ग्रामीण बांस-बिंदु पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। इस समय एक एक पानी की बूंद के लिए जंगल में रहने वाले लोगों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। ग्रामीण महिलाओं को झील की रेत का सीना चीरकर घंटों के इंतजार के बाद एक हांडी पीने के लिए पानी बामुश्किल इकट्ठा कर पाती है।
यह झरिया से पानी लेने लगभग 02 किमी दूर 40 डिग्री तेज धूप में पैदल यात्रा के बाद पानी भरने हो रही है परेशानी। झरिया के आस-पास के आश्रमों का निर्माण किया गया है ओर उसमें निवास करते हैं। ग्रामीण महिलाएं समूह में झरिया में पानी लेती हैं और साथ में सुरक्षा की दृष्टि से पुरुष भी उनके साथ रहते हैं क्योंकि आश्रम में आश्रम के लोग रहते हैं। मानपुर क्षेत्र के पहाड़ी के ऊपर बसे ग्राम ताराझर, माटाल, कुरवापानी, बियरडिग्गी, दड़ापानी जैसे ग्रामों के लोगों को पीने के लिए साफ सुथरा पानी उपलब्ध नहीं हो रहा है। यह देख कर केन्द्र और राज्य सरकार के द्वारा किए जा रहे विकास के दावे फेल नजर आ रहा हैं।
एक बूंद पानी की कीमत ये ग्रामीण ही समझते हैं। इन ग्रामों में रहने वाले नागरिकों की संख्या लगभग 560 के आसपास है, यहां के निवासरत कमार जनजाति निवास करते हैं। पहाड़ी पर बसे इन ग्रामों विकास के दृष्टिकोण से जंगल के अबूझमाड़ के दुर्गम इलाको से भी बत्तर स्थिति में है। एक तरफ राज्य और केंद्र सरकार हर गांव घर तक साफ सुथरा पानी पहुंचाने का भले दावा भले कर रही है। वहीं दूसरी तरफ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग का दायित्व है कि हर नागरिक को शुद्ध प्रयास उपलब्ध कराया जाए। आजादी के 75 साल बाद भी जंगलों में रहने वाले नागरिकों को पानी की समस्यायों से जूझना पड़ रहा है और जिनका दायित्व है वह आंखें मूंदे सो रहे हैं।