Friday, March 21, 2025
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बीड़ी से बीड़ी जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो : कवासी लखमा

सत्यप्रकाश दुबे / रायपुर । मौसम सुहाने आ गए, चुनाव के जमाने आ गए। जब सारे राजनेता अपने अपने इलाके में चुनावी तैयारी में जुटे हैं तब पूरे समय अपने चुनाव क्षेत्र में लगातार जनता के बीच सक्रिय रहने वाले बस्तर के प्रभारी और छत्तीसगढ़ के उद्योग आबकारी मंत्री कवासी लखमा भी अपने चुनाव क्षेत्र में एक अलग ही अंदाज में भेंट मुलाकात कर जनता के बीच प्यार बांट रहे हैं।

राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान से लखमा की मोहब्बत की दुकान
कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता राहुल गांधी की मोहब्बत की दुकान से लखमा की मोहब्बत की दुकान किसी सूरत में कम नहीं है। वे भी प्यार बांट रहे हैं और ये भी प्यार बांट रहे हैं। फर्क माहौल और जगह का है। पुरानी कहावत है कि जैसा देश, वैसा भेष। लखमा के दिल में बस्तर बसता है और बस्तर आदिवासी संस्कृति का स्वर्ग है। अपनापन बस्तर की पहचान है तो बीड़ी यहां के लोक जीवन में सम्मान व व्यवहार का हिस्सा है। यदि किसी की बीड़ी से कोई अपनी बीड़ी सुलगाये तो परस्पर स्नेह आत्मीयता का परिचायक माना जाता है और कवासी लखमा की पहचान तो सहज सरल मुस्कान के साथ हर किसी से मिलना ही है।

लखमा का अंदाज ए बयां
जिस तरह देश की राजनीति में लालूप्रसाद यादव के कटाक्ष और अपनत्व के बोल चर्चित होते रहे हैं, वैसे छत्तीसगढ़ की राजनीति में कवासी लखमा इकलौती शख्सियत हैं, जिनके कटाक्ष सीधे छाती में धंसते हैं लेकिन सामने वाला आह भी नहीं भरता। वह बुरा नहीं मानता क्योंकि लखमा का अंदाज ए बयां होता ही कुछ ऐसा है। वे छत्तीसगढ़ में अपनी निराली शैली के सर्वाधिक चर्चित राजनेता हैं। मंत्री रहते हुए भी अपनी संस्कृति से सराबोर लोकजीवन को ओढ़ने बिछाने वाले इस राजनेता को रुतबा छू भी नहीं पाया। लोक संस्कृति के आयोजनों में परंपरागत नृत्य और धार्मिक आयोजनों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित ही रहती है। ऐसे नेता को कौन अपना न मानेगा, जो मिलते ही दिल जीत लेता है।

जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
आपने एक पुराना गीत सुना होगा- जोत से जोत जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो। अब लखमा का अंदाज यह कह रहा है कि बीड़ी से बीड़ी जलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो, राह में आये जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो। अपने इलाके में अपनों से मिलने पहुंचे लखमा ने जिस सहज भाव से एक ग्रामीण की बीड़ी से बीड़ी जलाकर साथ साथ धुंआ उड़ाया, उससे उनके सियासी दुश्मनों के अरमानों का धुंआ निकल गया। हाल के वर्षों का एक तराना भी लोगों को याद आ गया कि बीड़ी जलाइले जिगर से पिया, जिगर म बड़ी आग है। लखमा ने बीड़ी से बीड़ी जरूर जलाई है लेकिन उनके जिगर में अपनों की जिंदगी में रोशनी के लिए जो आग भरी हुई है, वह आज की राजनीति के दौर में बहुत मायने रखती है।

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