स्टारन्यूज आईएनडी डेस्क । छत्तीसगढ़ में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग, OBC) आरक्षण को लेकर हालिया विवाद ने राज्य की राजनीति को झकझोर कर रख दिया है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व के सवालों को जन्म दे रहा है, बल्कि राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप की एक नई लड़ाई भी छेड़ चुका है। इस विवाद का केंद्र जिला पंचायत अध्यक्ष पदों और निकायों में OBC आरक्षण में की गई कथित कटौती है। कांग्रेस और भाजपा, दोनों इस मुद्दे को अपने-अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे सामाजिक न्याय की अवधारणा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में OBC वर्ग राज्य की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है और उनका राजनीतिक प्रभाव भी अहम है। हाल ही में जिला पंचायत अध्यक्ष पदों में ओबीसी आरक्षण को खत्म किए जाने से यह वर्ग नाराज है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस वर्ग के समर्थन को सुनिश्चित करने के लिए जोर-आजमाइश कर रहे हैं। कांग्रेस का आरोप है कि भाजपा सरकार ने जानबूझकर ओबीसी आरक्षण में कटौती की है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज का कहना है कि यह कदम बहुसंख्यक ओबीसी वर्ग को चुनावी राजनीति से बाहर करने का एक षड्यंत्र है। विशेष रूप से बस्तर और सरगुजा संभागों में ओबीसी आरक्षण पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है, जिसे कांग्रेस सामाजिक अन्याय करार देती है। दूसरी ओर, भाजपा का कहना है कि कांग्रेस इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से तूल दे रही है।
उपमुख्यमंत्री अरुण साव का दावा है कि भाजपा सरकार अनारक्षित सीटों पर OBC उम्मीदवारों को अधिक प्रतिनिधित्व देकर उनके हितों को संरक्षित कर रही है। भाजपा इसे कांग्रेस के राजनीतिक स्वार्थ के खिलाफ अपनी ओबीसी हितैषी नीतियों का हिस्सा बता रही है।
कांग्रेस ने इस मुद्दे को लेकर 15 जनवरी को प्रदेशव्यापी धरना प्रदर्शन का ऐलान किया है। पार्टी इसे “सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष” बता रही है। कांग्रेस का दावा है कि भाजपा सरकार ने OBC वर्ग के अधिकारों की अनदेखी की है और उनके आरक्षण को खत्म कर उनकी राजनीतिक भागीदारी को बाधित किया है। वहीं, भाजपा ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा है कि पार्टी ओबीसी वर्ग को गुमराह कर रही है।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण देव ने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में OBC वर्ग के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए और अब यह पार्टी इस वर्ग का सहारा लेकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहती है। यह विवाद केवल राजनीतिक दायरे तक सीमित नहीं है। बस्तर और सरगुजा जैसे क्षेत्रों में ओबीसी वर्ग का एक बड़ा हिस्सा रहता है, लेकिन इन इलाकों में आरक्षण की अनुपस्थिति ने इस वर्ग की भागीदारी और प्रतिनिधित्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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सामाजिक न्याय के लिए उठाए गए सवाल यह भी दर्शाते हैं कि आरक्षण जैसी संवैधानिक व्यवस्था का उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए हो रहा है। क्या यह वर्ग अपने अधिकारों के लिए संगठित होकर संघर्ष करेगा, यह आने वाले समय में देखने वाली बात होगी। यह विवाद केवल छत्तीसगढ़ तक सीमित नहीं रहेगा।
ओबीसी (OBC) आरक्षण को लेकर यह बहस राष्ट्रीय स्तर पर भी गहराएगी। यह सवाल खड़ा होता है कि क्या राजनीतिक दल सामाजिक न्याय के लिए सच में प्रतिबद्ध हैं या केवल इसे वोट बैंक के रूप में देख रहे है। ओबीसी आरक्षण विवाद ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में सामाजिक न्याय और राजनीतिक स्वार्थ की बहस को फिर से जीवित कर दिया है। कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय की लड़ाई के रूप में पेश कर रही है, जबकि भाजपा इसे कांग्रेस के “राजनीतिक स्वार्थ” का परिणाम बता रही है।
आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर जनता की राय और दोनों दलों की रणनीति राज्य की राजनीति को नई दिशा दे सकती है। लेकिन यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ओबीसी वर्ग (OBC) केवल राजनीतिक हथकंडों का हिस्सा बनकर न रह जाए, बल्कि उनके वास्तविक अधिकार और प्रतिनिधित्व सुरक्षित रहें।