रायपुर/Star News। छत्तीसगढ़ विधानसभा के बजट सत्र 2025 में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने जब बस्तर पंडुम 2025 के प्रतीक चिन्ह का भव्य विमोचन किया, तब इसे बस्तर की समृद्ध जनजातीय संस्कृति के उत्सव के रूप में देखा गया। मंच पर तालियों की गूंज थी, कैमरों की फ्लैश चमक रही थी, और प्रशासनिक अधिकारी मुस्कान के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे थे। लेकिन कुछ ही घंटों बाद इस गर्व के प्रतीक की दुर्दशा ने सरकार की नियोजन और गंभीरता पर सवाल खड़े कर दिए।
विमोचन के बाद ‘अपमान’—संस्कृति को ठेस?
जहां एक तरफ मुख्यमंत्री ने बस्तर की अनूठी परंपराओं और संस्कृति को संजोने की बात कही, वहीं कुछ ही देर बाद बस्तर पंडुम 2025 का प्रतीक चिह्न महिला प्रशाधन के बाजू में उपेक्षित पड़ा मिला। क्या यह केवल औपचारिकता की रस्म थी, या फिर बस्तर की संस्कृति को वाकई में सम्मान देने की इच्छा थी?
बस्तर का गौरव, लेकिन किसके लिए?
बस्तर पंडुम सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि जनजातीय जीवन, प्रकृति, और परंपराओं का जश्न है। सरकार ने इसे बड़े पैमाने पर मनाने की घोषणा की, लेकिन जब इसका प्रतीक ही लापरवाही की भेंट चढ़ गया, तो योजनाओं के असली इरादों पर सवाल उठने लगे। क्या यह आयोजन भी केवल सरकारी घोषणाओं और तस्वीरों तक ही सीमित रह जाएगा?
क्या सरकार वाकई गंभीर है?
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मीडिया से बातचीत में बस्तर में शांति, विकास और खेलों को बढ़ावा देने के लिए किए गए प्रयासों का उल्लेख किया। बस्तर ओलंपिक में 1.65 लाख प्रतिभागियों की भागीदारी और अबूझमाड़ 30 हाफ मैराथन में 8,000 से अधिक धावकों की मौजूदगी को बस्तर की प्रगति का प्रमाण बताया। लेकिन सवाल यह है कि अगर बस्तर पंडुम भी ऐसी ही बड़ी पहल है, तो इसका प्रतीक चिह्न इतनी लापरवाही से कैसे पड़ा मिला?